कैसे शुरू हुआ गोवर्धन पूजा और भैया-दूज पर्व ? जानें इसकी पौराणिक कथा.

गोवर्धन पूजा और भैया-दूज : कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन की पूजा की जाती है. इस दिन महिलाएं गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर इसकी पूजा करती हैं. अगले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया को भाई-बहन के स्नेह, त्याग और समर्पण का प्रतीक भैया-दूज पर्व मनाया जाता है.



भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर गोकुलवासियों की,की थी रक्षा.

ऐसी मान्यता है कि देवराज इन्द्र का घमंड तोड़ने के लिए एक बार प्रभु श्रीकृष्ण ने इन्द्र की पूजा करना छोड़ गोवर्धन पर्वत की पूजा करने का सलाह दिया. जिसके बाद व्रजवासी  गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे. इससे क्रुद्ध देवराज इन्द्र ने भीषण वर्षा कराई ताकि पूरी नगरी बाढ़ में डूब जाए. इन्द्र का ऐसा प्रकोप देख भगवान कृष्ण ने अपने कनिष्ठा पर गोवर्धन को उठा लोगों की रक्षा की. इन्द्र का हर एक प्रयास विफल हो गया. उसके बाद लोगों ने आश्रयदाता गोवर्धन की पूजा करना शुरू कर दी. तभी से इस विशेष दिन पर गोवर्धन की आकृति बना उनकी पूजा की जाती है. इस अवसर पर भगवान कृष्ण की वंदना की जाती है. उन्हें विविध प्रकार के नेवेध्य समर्पित किए जाते हैं और माता लक्ष्मी की स्वरूप मानी जाने वाली गायों की पूजा की जाती है. 

भैया-दूज के अवसर बहनें व्रत रख भाई के लिए प्रभु से करती हैं कामना. 

इस दिन बहनें भाई की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. भाइयों के रक्षा के लिए उन्हें तिलक लगाती हैं. भाई दूज पर्व रक्षाबंधन की तरह ही भाई-बहन के स्नेह का पर्व है. इस दिन बहनें व्रत रखती है और भाई के रक्षार्थ भगवान से कामना करती हैं. इस व्रत की कथा सुनती हैं. 
                        
                           भैया-दूज पर्व कथा
 
यमराज ने अपनी बहन यमुना से भैया-दुज के अवसर पर किसी का भी प्राण नहीं हरने का किया था वादा.

भगवान सूर्यदेव की पत्नी का नाम छाया था. छाया की कोख से यमुना और यमराज का जन्म हुआ था. बहन यमुना अपने भाई यमराज से बहुत स्नेह करती थी. उसकी प्रबल इच्छा रहती थी कि भ्राता उनके घर आए. वह यमराज से हमेशा इस संदर्भ में निवेदन करती रहती थी. किन्तु व्यस्तता का हवाला देकर यमराज इसे टाल देते. लेकिन एक दिन यमराज ने सोचा मैं लोगों का प्राण हरने वाला हूं. इसलिए कोई मुझे अपने घर आमंत्रित नहीं करता. यमुना जब इतना स्नेह से बुला रही है तो क्यों न मुझे उससे मिल लेना चाहिए. ऐसा सोचकर वे अपनी बहन से मिलने चल दिए. जैसे ही यमराज अपनी बहन के घर पहुंचे बहन यमुना बहुत खुश हुई. यमुना ने स्नान कर अपने भाई को भोजन परोसा. बहन के स्नेह और सत्कार से खुश होकर यमराज ने अपनी बहन से वरदान मांगने के लिए कहा. इसपर यमुना ने कहा भैया आप ऐसा वरदान दीजिए की इस दिन जो बहन अपने भाई को अपने घर बुलाए,भोजन कराए और सत्कार करे उसे आपका भय नहीं रहे. यमदेव ने तथास्तु कहकर अपनी बहन की बात स्वीकार कर ली. इस तरह से इस विशेष दिन पर इस पर्व की शुरुआत हुई. 

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2 टिप्पणियाँ

  1. चित्रगुप्त पूजा कायस्थ परिवार का एक अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है। ऐसी मान्यता है कि
    हर आदमी के कर्मो का लेखा-जोखा
    श्री चित्रगुप्त भगवान रखते हैं ।अतः कायस्थ समुदाय द्वारा यह सामुहिक पूजा प्रचीन भारतीय समाज की संस्कृति एवं मूल्यों को भी सुरक्षित रखती है
    अमित भूषण वर्मा
    भूतपूर्व कोल इंडिया अधिकारी

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    1. जी। टिप्पणी करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद।

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