कथावाचक डॉ रमाशंकर ने कहा - महान ज्ञानी थे राजा जनक
बड़हरिया (सिवान) : राजा जनक महान ज्ञानी हैं । श्रीमद्भागवत गीता जी में उपदेश करते समय भगवान कृष्ण को जनक महाराज याद आते हैं । प्रभु ने किसी दूसरे का नाम नहीं लिया, श्रीकृष्ण ने जनक का दृष्टांत दिया । राजा जनक की पदवी थी विदेह जनक, देह में होते हुए जिसको देह धर्म यानी इन्द्रियों की कामना न सतावे, स्पर्श न करे । देह में होने पर भी देह से अलग रहे, उसको विदेह अथवा जीवन्मुक्त कहते हैं । उक्त बातें प्रसिद्ध श्रीराम कथा वाचक अनंतश्री विभूषित डॉ रामा शंकर नाथ दास जी महाराज ने कही । श्री महाराज प्रखंड के गिरधरपुर गांव में चल रहे श्रीराम कथा ज्ञान यज्ञ के तीसरे दिन श्रद्धालुओं को कथा का रसपान करा रहे थे । श्री महाराज ने आगे कहा कि प्रारब्ध के अनुसार देह तो प्राप्त हुई है, परन्तु जो जीवन मुक्त है वह नया प्रारब्ध खड़ा नहीं होने देता । वह संकल्प-विकल्प रहित होता है । प्रारब्ध कर्म से प्राप्त वासना के कारण वह संसारियों की तरह संसार के भोग भोगता हुआ देखा जाता है । परन्तु वह जानता है कि आत्मा और शरीर अलग-अलग हैं । शरीर का धर्म अलग है, आत्मा निर्लेप है। आत्मा मन का द्रष्टा है, साक्षी है । ज्ञानी पुरुष आत्म स्वरूप में स्थित हैं । वे संसार के समस्त व्यवहार करते हुए भी स्वयं कुछ नहीं करते। ऐसी निष्काम भावना से उनके सर्व काम सम्पन होते हैं । ज्ञानी महापुरुष अधिकांश भाग में दोनों आंखों के मध्य में ललाट में नजर स्थिर रखते हैं । दोनों आंखों के मध्य में ललाट में एक ज्योति होती है । तुम आँख बंद करके ललाट में नजर रखोगे तो ज्योति नजर आएगी । ज्ञानी पुरुष सतत ऐसा अनुसंधान करते रहते हैं कि मैं पुरुष नहीं, मैं स्त्री नहीं । शरीर का सुख इन्द्रियों का सुख मेरा नहीं है । मैं सुध चेतन आत्मा ईशवर का अंश हूं । उन्होंने आगे कहा कि जब राम लखन गए तो विश्वामित्र ने उनसे कहा कि तुम परीक्षा करके देखो राजन ये कौन हैं तब जनक राजा एक क्षण तक श्रीराम लखन को निहारने लगे । चरण से मुखार विंद तक सर्वांग को सूक्ष्म रूप से देखकर जनक महराज को विश्वास हुआ कि श्रीराम ऋषिकुमार नहीं, राज कुमार नहीं, कोई मानव नहीं, कोई देव नहीं, स्वयं परमात्मा हैं । मेरे मन आंखों को केवल परमात्मा ही आकर्षित कर सकते हैं । कोई सुन्दर स्त्री दिखे पुरुष दिखे जगत की कोई भी सुन्दर पदार्थ दिखे फिर भी मेरे मन मे जरा भी आकर्षण नहीं होता । मैं संसार में रहता हूँ पर संसार की कामना प्रभु की कृपा से हमें सताती नहीं हैं । इसलिए श्रीराम अगर ईश्वर नहीं होते तो मेरे मन को इतना आकर्षित नहीं करते । जनक महाराज का मन परमात्मा ने खींच लिया । जनक महाराज सतत ब्रह्म चिंतन करते हैं । उन्हें मन के ऊपर विश्वास है कि मेरे मन को परमात्मा को छोड़ कर कोई अन्य आकर्षित ही नहीं कर सकता । मेरा मन पवित्र है । मैं संसार में रहता हूँ परन्तु मेरा मन संसार में नहीं है । श्री महाराज ने कहा कि संसार में महापुरुष सदा सावधान रहते हैं कि बाहर का संसार अंदर नहीं आवे, मन मे प्रवेश न कर पावे । नाव जल में रहती है परंतु नाव में जल आ जाये तो डूब जाती है । इसी प्रकार संसार में आ जाये तो मन को डूबा देता है । ज्ञान भक्ति में विध्न कर देता है । संसार बाधक नहीं, संसार के विषयों का चिंतन बाधक है । विषयों के चिंतन से ही मन चंचल होता है । मन में रहने वाले संसार से ही मन जीवित है । मन में संसार रहे, विषय न रहे तो मन शांत हो जाता है । वेद नेति नेति कहकर जिसका वर्णन करते हैं भगवान शंकर जिस स्वरूप का नित्य ध्यान करते हैं वे परब्रह्म यही हैं आज तक मैं निराकार ब्रह्म का ध्यान करता था । वे निराकार ब्रह्म ही साकार श्रीराम रूप में पधारे हैं । श्रीराम ही परमात्मा हैं । यह जानकर राजा जनक को अतिशय आंनद हुआ । गुरु जी सहित राम लखन का यथा योग्य सेवा किये । तुलसीजी महाराज कहते हैं कि कौशल देशवासी महाभाग्यशाली हैं उनमें से जिस-जिस ने श्रीराम का स्पर्श किया, उनके साथ बातें की, उनका अनुगमन किया, अरे जिसने रामजी का केवल दर्शन किये वे सब उस परम धाम गए जहाँ बड़े-बड़े योगी जाते हैं । श्रीराम चरित्र का जो श्रवण करता है वह कर्म के बंधनों से मुक्त हो जाता है । श्रीराम की शरणा गति प्राप्त हो जाती है । इस अवसर पर मटकोर कार्यक्रम का आयोजन किया गया । जिसमें काफी संख्या में ग्रामीण महिलाओं ने मांगलिक गीतों के साथ मटकोर की विधि की । मौके पर विहिप के जिला सह मंत्री परमेश्वर सिंह कुशवाहा, डॉ सतेंद्र कुमार गिरी, उपेंद्र गिरी, अभय भारती, सुजीत कुमार डबलू, अमित कुमार सिंह, युवा कथा वाचक सुशील विनायक सूर्यवंशी आदि मौजूद रहे ।
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